
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल
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हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर खनन नहीं होगा। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तराखंड सरकार और गढ़वाल मंडल विकास निगम की पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है. न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया कि खनन के लिए अंतरराज्यीय सीमा प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। साथ ही दो राज्यों को पर्यावरण मंजूरी का लाभ नहीं दिया जा सकता है। एनजीटी ने अपने फैसले में कहा कि खनन के लिए गढ़वाल निगम को मंजूरी दी गई थी, लेकिन निगम ने खनन के अधिकार दो ठेकेदारों को हस्तांतरित कर दिए थे। ट्रिब्यूनल ने इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सही फैसला दिया है। इसी के चलते एनजीटी ने अपने फैसले पर दोबारा विचार करने से इनकार कर दिया। ट्रिब्यूनल ने तत्काल प्रभाव से हिमाचल की सीमा पर यमुना नदी पर अवैध खनन पर रोक लगा दी थी। एनजीटी ने पर्यावरण को सालाना करीब 100 करोड़ रुपये के नुकसान का भी अनुमान लगाया है।
बता दें कि जुनैद अयूबी ने आरोप लगाया था कि गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा अवैध खनन किया जा रहा है. तर्क दिया गया कि खनन के लिए गढ़वाल निगम को अनुमति दी गई थी, लेकिन निगम ने खनन का अधिकार दो ठेकेदारों को हस्तांतरित कर दिया। इसके अलावा नदी के किनारे खनन किया जा रहा है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है. यह भी आरोप लगाया गया कि गूगल अर्थ के माध्यम से खनन पट्टे का एक हिस्सा उत्तराखंड के गांव ढकरानी में खसरा नंबर 971 में है जबकि दूसरा हिस्सा हिमाचल प्रदेश के मानपुर देवड़ा गांव में है। इनमें से 80 फीसदी खनन पट्टे हिमाचल में और 20 फीसदी उत्तराखंड में हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि निगम और ठेकेदार ने उत्तराखंड सरकार के समक्ष हिमाचल सीमा का मुद्दा भी उठाया था. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि यमुना नदी के किनारे हिमाचल के दो किलोमीटर के भीतर खनन के लिए साइट दी गई थी, जिसके लिए कोई वैध पर्यावरण मंजूरी नहीं ली गई थी।