
बिहार की राजनीति: उपेंद्र कुशवाहा ने परमाणु पर निशाना साधा।
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राजनीति में पार्टियों का टूटना और अपवर्तना मायने रखता है। उपेंद्र कुशवाहा की नई पार्टी बनाने के बाद जद (यू) में घमासान अभी रुका हुआ है, लेकिन आगे क्या होगा, कहना मुश्किल है। इस घमासान पर जड़ (यू) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने बड़ी साध्वी बात कही। अमर उजाला से विशेष बातचीत में केसी त्यागी ने कहा कि हम राम मनोहर लोहिया वाले समाजवादी हैं। हम अच्छे नहीं और टूटना हमारे भाग्य में हैं। हमारा टूटना और मुख्य विरोधी दल कांग्रेस की निकम्मा होना, भाजपा को मजबूत होने का मौका देगा। इसी देश का दुर्भाग्य भी है।
राजनीतिक समझ के स्तर पर खुद को बहुत परिपक्व टूटे हुए केसी त्यागी ने ठीक चंदन में ही राजनीति की पूरी पटकथा लिखी है। इसमें कहीं तंज है तो कहीं विकार। तो नीति और नीयत पर सवाल भी है। दिलचस्प यह भी है कि जब निकुटर कुमार का चौथी बार साथ छोड़ उपेंद्र कुशवाहा चले गए हैं, तो जद(यू) के अध्यक्ष राजीव रंजन अर ललन सिंह कुशवाहा द्वारा रुके गए पूरे गंभीर सवालों का जवाब दे रहे हैं। यह जवाब और मासूम कुमार के अंदाज से साफ दिख रहा है कि रणनीति ने कुशवाहा के पार्टी लौटने का डर पहले ही लगा लिया था। इसलिए कुशवाहा एकतरफा आक्रामक थे और जद(यू) अपने राह पर। अब कुशवाहा की नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बिहार में अपनी राजनीतिक जड़ें मजबूत कर रहा है।
निवर्तमान कुमार का क्या होगा उपेंद्र कुशवाहा?
उपेंद्र कुशवाहा ने नई राजनीतिक पार्टी बनाई है। उनके मीडिया सलाहकार का कहना है कि बिहार में तो दो ही रास्ते हैं। एक महागठबंधन के साथ है और दूसरा एनडीए का। इसलिए देरी से सबेर एनडीए का फिर से दल घटक बनेगा। कुशवाहा के करीबी कहते हैं कि बिहार में कुशवाहा के छिटकने के बाद कमजोर कुमार के पास क्या बचेगा, यह कहने की जरूरत नहीं है? जवाब में केसी त्यागी प्रश्न पूछते हुए कहते हैं कि कोई पहली बार कुशवाहा छोड़ गए हैं? प्रश्न राजनीतिक और जनता के बीच भरोसे का भी है। केसी बलिदानी कहते हैं कि पिछला चुनाव वह ओवैसी की पार्टी के साथ लड़े थे। इसके पहले राष्ट्रीय लोकदल के साथ लड़ाई हुई थी। क्या वह कहीं भी एक जगह हैं। आशय यह है कि उपेंद्र कुशवाहा के अलग होने और नया बनने के बाद लागू कुमार पार्टी और उनकी पार्टी जद (यू) की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। राजद के संस्थापकों में जाने वाले एक बड़े नेता का कहना है कि अभी वह कुशवाहा को लेकर कुछ नहीं कहना चाहते। वह कभी एनडीए के साथ थे। केंद्र सरकार के मंत्री थे और मौके छोड़कर बाहर आ गए थे। वह कुछ हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों के साथ जुड़ते हैं और कुछ न मिलने के साथ छोड़ देते हैं। अब ऐसे राजनीतिक शख्सियत के बारे में क्या कहते हैं?