चाणक्य नीति: कुछ रिश्ते कई रिश्ते और जटिल होते हैं, उनमें से एक पुरुष की अपनी मां और पत्नी के साथ संबंध है। अक्सर शादी के पहले पुरुष अपनी मां के बेहद करीब होते हैं। मां की आंचल ही उनकी सबसे बड़ी खुशी होती है। वह हर छोटी-बड़ी बात मां से शेयर करते हैं। वहीं शादी के बाद जब पत्नी की जिंदगी में प्रवेश होता है तो जिंदगी में कई तरह के बदलाव आ जाते हैं। चाणक्य कहते हैं कि इन दोनों का सम्मान, प्रेम को धारण करने वाला सुखी जीवन जीता है। वहीं चाणक्य ने एक श्लोक में कहा है कि किन पुरुषों को घर छोड़कर वन में चले जाना चाहिए। आइए जानते हैं चाणक्य ने पाइक्स के परियों में पुरुषों के लिए ऐसी बात क्यों कही है।
माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चापप्रियवादिनी।
अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृहम् ॥
श्लोक में चाणक्य ने घर में अजगर होने की अहमियत को बताया है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि स्त्री का घर में होना बहुत जरूरी है, क्योंकि बचपन से युवावस्था तक मां व्यक्ति का मार्गदर्शन करती है। उसे सही तरीके से सीखें। ममता की छावनी घर को बनाती है। बिना माता-पिता के घर विरान हो जाता है। चाणक्य कहते हैं कि ऐसे घर में रहने से अच्छा है वन में चले जाएं, जहां आप प्रकृति माता की गोद में विचार कर सकते हैं।
घर में रहना अच्छा है एक चले जाओ
चाणक्य ने जीवन में पत्नी की भूमिका का भी उल्लेख किया है। वह कहते हैं कि यदि मां ना हो और सौभ स्वभाव की पत्नी भी घर में हीन शांति की स्थापना कर सकती है। लेकिन अगर पत्नी बात-बात पर क्लेश करती हो, जिसमें घर-परिवार को एकता रखने का भाव न हो। ऐसे में घर में रहने के बजाय वन को चले जाएं। आज के परिपेक्ष में बात करें तो व्यक्ति को वहां रहना चाहिए जहां उसे मानसिक शांति, सुख मिले। चाणक्य ने कहा है कि जब तक शांति और आपसी तालमेल हो तब तक घर में रहना उचित है। अगर घर में साथ रहें और आमने-सामने रहें तो जंगल में रहना क्या बुराई है।
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